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* प्रथम सर्ग **
उस पेड़की रखवालीका भार था और कहा कि उस पेड़का जितना हिस्सा बचा हो, उसकी रखवाली करो । उन्होंने वहाँका हाल देख, राजाके पास आकर कहा, “महाराज ! वहाँ तो लोगोंने उस पेड़का नामो-निशान भी नहीं रहने दिया है ।" "यह सुन राजा बहुत अफ़सोस करने लगे कि, हाय ! मैंने अभाग्य वश कैसा काम कर डाला ?"
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कर रहे हो ?
इतनी कथा सुनाकर राजा जितशत्रु के प्रधान मन्त्रीने कहा," हे महाराज ! मैं इसी लिये कहता हूँ कि बिना बिचारे कोई काम नहीं करना चाहिये । आप सर्व गुण सम्पन्न ललिताङ्ग कुमारकी परीक्षा किये बिना ही क्यों उनसे युद्ध करनेकी तैयारी कर रहे हैं ? अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं कुमारके पास जाकर उनका सारा हाल पूछ आऊँ ।" यह सुन, राजाने कहा कि अच्छा, ऐसा ही करो । राजाकी बात सुन मन्त्रीने कुमारके पास आकर प्रणाम करते हुए कहा, "हे कुमारेन्द्र ! यह क्या अनर्थ पहले अपने कुल आदिका तो परिचय दो। कुमारने कहा,- - "हे मन्त्री ! मेरी भुजाओंका पराक्रमही तुम लोगोंको मेरे कुलका परिचय दे देगा। पहले मेरा बाहु-बल देख लो, पीछे आप ही सब कुल जान जाओगे। यह सुन मन्त्रीने कहा, "हे स्वामी ! आपमें खूब पराक्रम है, इसमें शक नहीं; परन्तु पापी सज्जनने तुम्हारे कुलशील आदिके विषयमें बहुत ही ऊँच-नीच बातें कही थीं, इसीलिये हमारे राजाने आपका यथार्थ परिचय जाननेके लिये हमें भेजा मैं आपके पाँव पड़ता हूँ; कृपा करके शीघ्र बतला दो ।" यह