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___* षष्ठ सर्ग* अपनी-अपनी सूंढ़से प्रभुको कष्ट पहुंचाने लगे, किन्तु इससे प्रभुको जरा भी क्षोभ न हुआ। यह देखकर हाथियोंको लज्जा हुई और वे वहीं लोप हो गये। इसके बाद आरेके समान दाढ़ें, कुदालोके समान नख और अंगारेके समान आंखोवाले अनेक व्याघ्र प्रभुके सम्मुख प्रकट हुए और भूमिपर पूंछ पटक-पटककर भाषणवेगसे दहाड़ने लगे। किन्तु इनका भी प्रभुपर कोई असर न पड़ा और कुछ समयके बाद सिहोंको भो लजित हो लोप हो जाना पड़ा। इसके बाद मेधमालोने भयंकर चोते, विषधर सर्प
और बिच्छुओंको प्रकट किया। इनसे भी भगवान रंचमात्र भी विचलित न हुए। अन्तमें उस अधम देवने बाजे बजातो, गान गाती
और नाना प्रकारके हाव-भाव तथा कामचेष्टा करती हुई अनेक किनरियोंको प्रकट किया और उनके द्वारा भगवानको चलायमान करनेकी चेष्टा करने लगा। किन्तु इससे भो प्रभु विचलित न हुए। जिस प्रकार प्रचण्ड वायु चलनेपर भो मेघ चलायमान नहीं होता, उलो प्रकार प्रभु भी चलायमान न हुए। इसके बाद उस पापात्माने प्रभुके मस्तकपर धूली बरसायी, किन्तु भगवान पर इसका भी कोई प्रभाव न पड़ा। इसके बाद उस दुष्टात्माने विकोणे केश, विकृत आकृति और मुण्डमाल धारण करनेवाले विविध आकार-प्रकारके अनेक प्रेत और बेताल प्रकट किये परन्तु प्रभु इनके उपद्रवोंसे भी विचलित न हुए। यह देखकर उस दुष्टको बहुत ही ईर्ष्या उत्पन्न हुई और उसने प्रभुको जलमें डुबा देनेके लिये आकाशमें मेघ उत्पन्न किये। देखते-ही-देखते काल-जिह्वाके