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• पाश्वनाथ-चरित्र. ये? स्वेच्छापूर्वक भोजन, पान और शयन क्यों न किया जाय ? बौद्ध दर्शनमें भी कहा है कि मनपसंद भोजन, उत्तम शयन और मुन्दर भवनमें रहकर मौज करना चाहिये। सुबह दूध और मद्यपान करना चाहिये, दोपहरको स्वादिष्ट भोजन करना चाहिये। शामको मद्य और शरबत पीना चाहिये और रात्रिके समय अंगूर खाने चाहिये । इस प्रकार सुखोपभोग करते हुए अन्तमें मोक्षकी प्राप्ति होती है। इसलिये हम लोग भी इसी तरह काल यापन कर, वृथा कष्ट करनेसे क्या लाभ होगा? ____इस तरहकी बातें सोचकर उन साधुओंने चारित्रका त्याग कर दिया और सुखोपभोग करनेमें समय व्यतीत करने लगे। किन्तु आसन्न सिद्धि होनेके कारण कुछ दिनोंके बाद उनके मनमें फिर विवार उत्पन्न हुआ कि अहो ! हमलोग किस मार्गपर जा रहे हैं ? जगत् गुरु श्रीपार्श्वनाथको प्राप्त कर हमें आत्म कल्याणके मार्गपर अग्रसर होना चाहिये था, किन्तु उलटा हम लोग अपना अपकार कर रहे हैं। हम लोगोंने सच्चारित्र रूपी जलमें स्नान करनेके बाद फिर कुमति संसर्ग रूपी मिट्टोमें लोटना पसन्द किया। अब हम लोगोंकी न जाने क्या गति होगी ? हे भगवन् ! हम अब आपके शरणागत हैं। हमारी आप ही रक्षा कोजिये। इस प्रकारको बातें सोचते हुए वे क्षपक श्रेणीपर पहुंचे और शीघ्र ही पार्श्वनाथ परमात्माके ध्यानके प्रभावसे केवल ज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हुए।