Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 588
________________ * आठवा सर्गः समय उसे प्राणदण्डकी सजा दे दी। अनन्तर राजाके आदेशा... नुसार वधिक गण उसे नगरके बाहर ले गये और उसके गलेमें: फांसी डाल, उसे एक वृक्षको शाखामें लटका कर लौट आये। ___ कंठ प शसे पोडित श्रीगुप्त कभी आकाशको ओर ताकता और कभी पृथ्वीको ओर। वह अपने जीवनको अन्तिम घड़ियां गिन रहा था। इसी समय आयुष्य बलसे उसके गलेका पाश टूट गया और वह पृथ्वीपर आ गिरा। शोतल पवनके झकोरे लगनेपर जब उसकी मूर्छा दूर हुई और वह कुछ सावधान हुआ, तब वहांसे उठकर शीघ्र हो एक ओर भाग गया। भागते भागते वह एक जङ्गलमें जा पहुंचा। वहां उसे किसोकी मधुर ध्वनि सुनायी दो। अतः उसने इधर उधर देखा तो एक स्थानमें एक मुनि स्वाध्याय करते हुए दिखायी दिये । भयके कारण वह एक वृक्षकी आड़में छिा रहा और वहींसे कान लगा कर मुनिकी स्वाध्याय-ध्वनि सुनने लगा। सुनते सुनते उसके हृदयमें शुभ भावना जागृत हुई। वह अपने मनमें कहने लगा-"एका यह महानुभात्र हैं, जो संयमको साधना कर रहे हैं और एक मैं हूं जो रात दिन दुराचार, दुष्टता, पाप और व्यसनोंमें हो लीन रहता हूं। न जाने मेरो कौन गति होगी?" यह सोच कर वह मुनिके पास गया और उन्हें वन्दन कर, उनके पास बैठ गया। उस समय मुनि पाठ कर रहे थे, पाठसे निवृत्त हो, उन्होंने भोगुप्तसे कहा-“हे भद्र! तूने तो अभी पाप वृक्षका पुष्पही भोग किया है, कटु फल तो तुझे अब भोगने पड़ेंगे। तू यह वृथा पापा

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