Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 595
________________ ___ * पार्श्वनाथ-चरित्र * १००० वैक्रिय लब्धिधारी-केवलज्ञान प्राप्त होनेके बाद भगवानका इतना परिवार हुआ था। दीर्घकाल तक विहार करनेके बाद जब भगवानको अपना निर्वाण काल समीप दिखायी दिया, तब वे समेत शिखरपर चले गये। इस पर्वतको अजितनाथ प्रभृति तीर्थंकरोंका सिद्धिस्थान समझ कर भगवानने यहीं निवास कर अनशन आरम्भ किया। इस समय अनेक देवता भगवानकी सेवा करते थे और अनेक किन्नरियां उनका गुणगान कर रही थीं। इन्द्रोंका आसन भी चलायमान हो उठा। उसी समय वे भगवानके पास आये और उन्हें वन्दन कर उदासीन हो उनके पास बैठ गये । श्रावण शुक्ला अष्टमीको विशाखा नक्षत्रमें भगवानने पहले मन वचनके योगका निरोध किया। यह देख अन्याय तैतीस मुनियोंने भी उनका अनुकरण किया। क्रमशः भगवानने शुक्ल ध्यान करते हुए पंच ह्रस्वाक्षर प्रमाण कालका आश्रय कर समस्त कर्मोंको क्षीण करते हुए संसारके समस्त दुःख और मलोंसे रहित हो अचल, अरुज, अक्षय, अनन्त और अव्यावाध मोक्षपद प्राप्त किया। इस समय तेतीस मुनियोंको भी उन्हींके साथ अक्षपदकी प्राप्ति हुई। इस प्रकार भगवानने तीस वर्ष गृहस्थावस्था और सत्तर वर्ष व्रतीकी अवस्थामें व्यतीत कर सौ वर्षकी आयु पूर्ण की। - इसके बाद शकेन्द्रने भगवानके शरीरको क्षोर समुद्र के जलसे स्नान कराया आर गोशीर्ष चन्दनसे लिप्त कर दिव्य भूषणोंसे विभूषित किया। अन्यान्य इन्द्रोंने उसे देवदृष्य घससे ढक दिया

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