Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

View full book text
Previous | Next

Page 597
________________ ५५० * पार्श्वनाथ-चरित्र दिन इनकी पूजा करने लगे। इसके प्रभावसे सर्वत्र उन्हें विजय मौर मंगलकी प्राप्ति होती थी। इस प्रकार पार्श्वनाथ भगवानने अगणित जीवोंका उद्धार कर अपनी इहलोक लीला समाप्त की। आज उनका नश्वर शरीर इस लोकमें न होने पर भी उनके स्वर्णोपदेश-उनके वे उपदेश जिनके श्रवण और मननसे हजारों प्राणियोंने पाप मुक्त हो मोक्ष लाभ किया है-हमारे सम्मुख उपस्थित हैं। आओ, हमलोग भी एकाग्रचित्तसे उनका मनन करें, उन्हें कार्य रूपमें परिणत करें भौर क्रमशः मोक्ष-सुखके अधिकारी बनें। अस्तु । qatstatutetattatutetstate * समाप्त * মুশশশশশশশশশষ্ট * समाप्त * शेष कमरूद्दीन, कमर प्रेस-५, चीतपुर स्पर कलकत्ता।

Loading...

Page Navigation
1 ... 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608