Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 591
________________ * पाश्वनाथ चरित्र स्मरण कर रहा था; इतनेमें पूर्वजन्मके मित्र किसी देवने आकर: उससे कहा-“हे श्रीगुप्त ! अब तू विशेष धर्म कर,क्योंकि भाजके सातवें दिन तेरो मृत्यु होगी। यह कह वह देव चला गया। श्री. गुप्तने उसको वातसे सावधान हो, उसो दिन जिनेश्वरको पूजाकर चारित्र ग्रहण किया और रातदिन अनशन पूर्वक नमस्कार मंत्रके स्मरणमें लोन रहने लगा। ठीक सातवें दिन उसकी मृत्यु हो गयो और वह स्वर्ग सुखका अधिकारी हुआ। क्रमशः अब उसे मोक्षकी प्राप्ति होगी। हे चण्डसेन ! महा पापी प्राणी भी इस प्रकार पापका त्याग कर और ध्यान, दान तथा तप द्वारा सद्गति प्राप्त करता है। यह संसार असार हैं। इसमें रहनेवाले सभी जोव स्वार्थ परायण हो होते हैं। विचार करनेपर मालूम होता है कि इस संसारमें कोई किसीका नहीं है । वास्तवमें संसार सुख मधुबिन्दुके समान है। चण्डसेनने पूछा-“हे स्वामिन् ! मधुविन्दु समानसे क्या तात्पर्य है ? भगवानने कहा, सुन : एक मनुष्य जङ्गलमें रास्ता भूल जानेके कारण इधर उधर भटक रहा था। इतने में उसे एक जंगली हाथोने देख लिया। देखते ही वह उसे मारने दौड़ा। अपनी ओर आते देखकर वह मनुष्य प्राण लेकर भगा। किन्तु यह जिधर जाता, उधर ही हाथी उसके पोछे लगता । इससे वह मनुष्य बहुतही घबड़ाया। अन्तमें कोई उपाय न देख, वह एक वट वृक्षपर चढ़ गया और उसकी एक जटा पकड़ कर लटक रहा। इस जटाके नीचे एक पुराना कुआं था। उस

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