Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 578
________________ * आठवाँ सग * ५३१ पास बैठाया। तदनन्तर प्रियदर्शनाने बन्धु दत्तको चण्डसेनका परिचय कराया और बन्धु दत्तने चण्डसेनका अपने मामासे परिचय कराया। इसके बाद बन्धुदत्त, धनदत्त, और प्रियदर्शना के अनुरोधसे चण्डसेनने शेष आठ बन्दियोंको भी छोड़ दिया। ___ एक दिन चंडसेनने बन्धुदत्तसे पूछा,-"मुझे इस बातपर बड़ा ही आश्चर्य हो रहा है कि आप पर इतने वार किये गये, फिर भी आपको लगे क्यों नहीं ? क्या आपके पास कोई औषधि है या यह किसी मन्त्रका प्रभाव है ?" यह सुन बन्धु दत्तने कहा,-- "म मेरे पास कोई औषधि है न कोई मन्त्र । यह केवल श्रीपार्श्वनाथके नाम स्मरणका प्रभाव है। इससे बड़ी-बड़ी विन गाथायें दूर होती हैं। खड्गप्रहारका रुकना तो एक साधारण बात हैं।" यह सुनकर चंडसेनने फिर पूछा,- पार्श्वनाथ देव फेसे हैं और कहां हैं ?" ब्रह्मदत्तने बतलाया कि,-"पार्श्वनाथ भगवानकी इन्द्र भौर मनेन्द्र सेवा करते हैं। वे सदा छत्र और चामरोंसे सुशोभित रहते हैं। इस समय वे नागपुरोमें विचरण करते हैं। वे अनन्त कोटि जन्मके सन्देह दूर करते हैं। उनके नाम स्मरणसे मनोवाञ्छित पदार्थों की प्राप्ति होती है।” बन्धुदत्तकी यह बातें सुनकर चण्डसेनने पार्षनाथके दर्शन करनेके लिये उत्सुकता दिखायी। अतः शोघ्रहो बन्धुदत्त अपनो स्त्रो, अपने मामा धनदत्त और चण्डसेनको साथ ले नागपुरोके लिये चल पड़ा। नागपुरीमें पहुँच, उन्होंने त्रिभुन पति पार्श्वनाथके समवसरणमें जाकर प्रभुके दर्शन कर उनका धर्मोपदेश श्रवण किया। इसके बाद

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