Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 585
________________ ५३८ * पार्श्वनाथ चरित्र # हुआ। वह अपने मनमें सोचने लगा- “श्रीगुप्तने लोहेका गोला उठाकर अपनेको निर्दोष प्रमाणित कर दिया । अब तो लोग यही कहेंगे कि मैंने उसे मिथ्या कलंक लगाया था । मुझे इस मामले में नीचा देखना पड़ा - मेरा अपमान हुआ । ऐसी अवस्थामें जोवित रहनेसे ही क्या लाभ होगा ?” यह सोचकर उसने अपने मन्त्रियोंको बुलाकर कहा - "श्रीगुप्तने तो अपनेको निर्दोष प्रमाणित कर दिखाया। मैं झूठा सिद्ध हुआ इसलिये अब जो सजा चोरको देनी चाहिये, वह मैं अपने आपको दूंगा। मुझे अब इस राज्यसे कोई प्रयोजन नहीं है । आप लोग जिसे चाहें उसे गद्दीपर बैठाइये और जो अच्छा लगे सो कीजिये ।” राजाको यह बात सुन मन्त्रियोंने उसे बहुत समझाया बुझाया, किन्तु कोई फल न हुआ । राजाने कहा - " मैंने जो कुछ कहा है, वह बहुत सोच समझ कर कहा । आप लोग अब शीघ्रही चन्दनकाष्टकी एक चिता तैयार करें उसीमें प्रवेश कर मैं अपना प्राण दे दूंगा ।” I समूचे नगर में यह समाचार विद्युत वेगसे फैल गया । महीधरके कानमें यह बात पड़ते ही वह राजाके पास दौड़ आया और कहने लगा- “हे राजन् ! आप यह क्या कर रहे हैं? आपका यह कार्य बहुत ही अनुचित है। अनुचित कार्य करनेसे सदा अहित ही होता है । इस अनर्थका वास्तविक कारण तो मैं हूं । यदि किसीको दण्ड ही देना हो तो मुझे दीजिये !” राजाने कहा - "नहीं, मित्र ! तूने मुझसे जो कहा था उसमें मुझे लेशमात्र भी सन्देह नहीं है। किन्तु श्रीगुप्तने लोहेका गोला

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