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* माठवौं सर्गविवाह करा दूं।" बन्धुदत्तको आकाशगामिनी विद्याकी अपेक्षा खोकी अधिक आवश्यकता थी अतएव उसने नहा,-"मैं एक साधारण वणिक हूं। मुझे आकाशगामिनी विद्याफी आवश्यकता नहीं है। यदि आप और कुछ देना चाहें, तो दे सकते हैं। मैं उसे स्वीकार करनेके लिये तैयार हूं।
बन्धुदत्तकी इस बातसे चित्राङ्गद समझ गया कि वह ब्याह के लिये विशेष उत्सुक है। फलतः वह किसी रूपवती कन्याक लिये चिन्ता करने लगा, इसी समय उसे उसकी बहन सुवर्णलेखाने आकर कहा कि,- कौशाम्बी में जिनदत्तकी प्रियदर्शना नामक एक लड़की मेरी सखी है। वह बड़ी ही रूपवती और शुशिला है। एक बार उसके पिताने चतुर्शानी मुनिसे पूछा था कि यह कन्या कैसी होगी? यह सुनकर मुनिने उसके पिताको बतलाया था कि इस कन्याका व्याह होनेके बाद यह एक पुत्रको जन्म देकर अन्तमें चारित्र ग्रहण करेगी।" उस कन्याको मैं अच्छी तरह जानती हूं। वह मेरी देखी सुनी है, इसलिये उसीके साथ बन्धुदत्तका व्याह करवानेका प्रबन्ध कीजिये।"
बहिनकी यह बात सुनकर चित्राङ्गदको बड़ाही आनन्द हुआ। उसी समय बन्धुदत्त और कई विद्याधरोंको अपने साथ ले वह कौशाम्बी गया। कौशाम्बी में प्रवेश करतेही पार्श्वनाथ भगवानका एक प्रासाद विनायी दिया। अतएव सब लोग वहां भगवानको वादन करने गये। इसी समय संयोगवश वहां जिमदल भी पूजा करने के लिये ना पहुंचा। जिन प्रासादमें बन्धुक्त तथा विद्या