Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 572
________________ wwwwwwmom *आठवा सर्ग - पहुंचा। यहां आनेपर चंडसेन नामक एक पल्लीपति भिल्लका दस अचानक उसके एक पर टूट पड़ा। बन्धुदत्तके साथ आदमी बहुत कम थे और मुटेरोंका दल बहुत बड़ा था अतएव उन्होंने देखते देखते बन्धुदत्तका सर्वस्व लूट लिया। चलते समय ये प्रिय. दर्शनाकोभी बलपूर्वक अपने साथ लेते गये। ___ यह सब लूटका माल लेकर लुटेरे चंडसेनके पास पहुंचे। प्रियदर्शनाको देखते ही चंडसेन उस पर मोहित हो गया। वह सोचने लगा कि मैं इसको अपनी प्रधान पत्नी बनाऊंगा। उसने प्रियदर्शनासे पूछा, “हे भद्रे ! तू कौन है ? किसकी पुत्री है। और तेरा क्या नाम है ?" उसका यह प्रश्न सुन कर प्रियदर्शनाने उसे अपना पूरा परिचय दे दिया। परिचय पाते ही चंडसेनने कहा,-"यदि वास्तवमें तू जिनदत्तकी पुत्री है, तो मैं तुझे अपनी बहनसे भी बढ़कर समझंगा, क्योंकि जिनदत्तने एक बार मुझ पर बड़ा भारी उपकार किया था। बात यह हुई थी कि एक दिन मैं कौशाम्बीके बाहर चोरोंके साथ मद्यपान कर रहा था। इतनेमें राजाके सिपाही आ पहुंचे। उन्हें देखते ही मेरे सब साथो तो भाग गये, किन्तु मैं उनके हाथमें पड़ गया। उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर राजाके सम्मुख उपस्थित किया। इसके बाद राजाने मुझे प्राणदण्डकी सजा दे दो इस लिये राजाके सेवक मुझे वध करने के लिये वधस्थानकी ओर ले चले। सौभाग्यवश उसी समय तेरे पिता पौषधकर उसी मार्गसे अपने घरकी ओर जा रहे थे। उन्होंने मेरा रोना-फलपना देख कर राजासे प्रार्थना की और मुझे छुड़ा

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