Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 571
________________ ५२४ •पार्श्वनाथ-चरित्र धरोंको देखकर उसे बड़ाही भानन्द हुमा। वह सबको निमन्त्रित कर भपने घर ले गया और वहां बड़े प्रेमसे सबको भोजनादिक कराया। भोजनसे निवृत्त हो सब लोग बात चीत करने बैठे। जिमदत्तने बन्धुदत्त मादिसे कौशाम्बी आगमनका कारण पूछा। चित्राङ्गदन लब वृत्तान्त बतलाकर कहा,-"हमलोग विद्याधर (जेचर ) हैं, किन्तु यह बन्धुदत्त भूचर है। भाप भी भूवर है, इसलिये आप अपनी कन्याका व्याह बन्धुदत्तसे कर दीजिये। यह सम्बन्ध बहुत ही उपयुक्त भौर लाभदायक प्रमाणित होगा। बन्धुदत्त सर्वगुण सम्पन्न और बड़ा ही धर्मनिष्ठ है। मापकी कन्या भी वैसीही सुशोला है । अतएव इन दोनोंका व्याह-सम्बन्ध सोना और सुगन्धकासा योग हो पड़ेगा। ' विवादका यह प्रस्ताव जिनदत्तने सहर्ष स्वीकार कर लिया और शीघ्रही बन्धुदत्तसे प्रियदर्शनाका ब्याह कर दिया । व्याह हो जानेपर विद्याधर तो अपने निवास खानको चले गये, किन्तु बन्धुदत्त वहीं रह गया और अपनी नवविवाहिता वधूके साथ आनन्दपूर्वक काल निर्गमन करने लगा। साथ ही वह सामायिक, प्रतिक्रमण ओर पौषधादिक धर्मकृत्य भी करता रहा। कुछ दिनोंके बाद प्रियदर्शना गर्भवती हुई। अब बन्धुदत्तने अपने घर जाना उचित समझा। इसके लिये शोघही उसने जिन दत्तकी माझा प्राप्त कर ली और अपनी पत्नी तथा कुछ सेवकोंके साथ वहांसे प्रस्थान किया। मार्गमें उसे एक भयंकर जंगल मिला । सीन दिनमें उस जंगलको पार फर वह एक तालाब किनारे

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