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* सप्तम सर्ग *
હાં. बहुत ही अच्छा हुआ । लोभीको ऐसी ही सजा मिलनी चाहिये ।" किन्तु अन्यान्य गणिकायें हाहाकार करती हुई राजाके पास पहुंचीं और उससे शिकायत की कि - "हे स्वामिन्! एक धूर्तने हमारे परिवारकी एक बुढ़ियाको औषधिके प्रयोग से गधी बना दिया है और अब वह उसपर बड़ा ही अत्याचार कर रहा है ।" वेश्याओं की यह बात सुन कर राजाको हंसी आ गयी । यह देख वेश्याओंने फिरसे कहा, "नाथ ! यदि आप भी इस बातको हंसीमें उड़ा देंगे, तो हम लोग फिर किससे फरियाद करेंगी ?* इस तरह वेश्याओंके बोलनेपर राजाको उनकी बातपर विश्वास हो आया अत: उसने उसी समय कोतवालको हुक्म दिया कि उस धूर्तको फौरन पकड़ ले आओ। यह सुन कोतवाल उसी समय गया और वयरसेनसे कहने लगा कि, “भाई ! तूने यह अनुचित कार्य क्यों किया है ?" यह सुन वयरसेनने कहा, " तू जिसके हुक्मसे यहां आया है, उसकी आज्ञा माननेको मैं तैयार नहीं हूँ । मुझे जो उचित मालूम हुआ, सो मैंने किया ।" यह सुनकर कोतवालको क्रोध आ गया और उसने बाण आदिक द्वारा वयरसेन पर प्रहार किये, किन्तु दण्डके प्रभावसे वे सब बेकार हो गये और वयरसेनका बाल भी बांका न हुआ। इसके बाद वयरसेन दण्ड घुमाता हुआ कोतवालके सामने आ पहुंचा। उसे अपने सामने आते देख कोतवाल भयके मारा काँप उठा और तुरत ही राजाके पास दौड़ा आया । यह देख राजाने कहा,"क्या माजरा है ? क्यों इस तरह भयभीत हो रहे हो ?” कोत
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