Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 562
________________ . ************ **** ******** **** * * आठवाँ सर्ग। * * **************** ************* BeazzaCREZI तीन जगतके स्वामी, जगत् गुरु, पार्श्वयक्षसे सेवित, सर्प लाञ्छनसे युक्त और आठ महाप्रतिहार्योंसे बिराजमान, चौंतीस अतिशयोंसे सुशोभित और वाणोके पैंतीस गुणोंसे शोभायमान भगवान पार्श्वनाथ विहार करते हुए एक बार पुंड्रदेशके साकेतपुर नगरके आम्रोद्यान नामक वनमें पधारे । पूर्वदेशमें ताम्रलिप्ति नगरमें बन्धुदत्त नामक एक युवक वनजारा रहता था। वह पूर्वजन्ममें ब्राह्मण था। उसको स्त्रो किसी अन्य पुरुषमें आसक थो अतएव उसने अपने पतिको विष देकर बाहर फेंक दिया। उसे मृतप्राय अवस्थामें एक ग्वालिन उठा ले गयो और उसने औषधोपचार कर उस ब्राह्मणको जिलाया। इस घटनासे ब्राह्मणको वैराग्य आ गया इसलिये उसने दीक्षा ले लो। मृत्यु होनेपर वह बन्धुदत्तके यहां पुत्र रूपमें उत्पन्न हुआ। यहाँ उसका नाम सागरदत्त रखा गया। उसे जाति-स्मरणज्ञान हो आया इसलिये वह समस्त स्त्रियोंसे विरक्त रहता था। उधर वह ग्वालिन भी मृत्यु होनेपर उसी नगरके एक वणिकके यहां रूपवती कन्याके रूपके उत्पन्न हुई। उसके बन्धुओंने सागरदत्तके साथ

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