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सप्तम सग
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इस प्रकार निरंतर पूजन कर वह अपने घर जाता। एक बार वह अपनी पूजाको अस्तव्यस्त अवस्थामें देख कर उसका कारण जाननेके लिये पूजन कर वहीं एकान्तमें छिप रहा । इसी समय एक भिल्ल बायें हाथमें धनुष बाण, दाहिने हाथ में पुष्प और मुहमें जल लेकर आया । आते ही उसने शिवपर चढ़े हुए पत्र पुष्पादि पैर से हटा दिये। इसके बाद मुंहका पानी शिवमूर्ति पर छोड़, पुष्प चढ़ा, उन्हें बन्दन किया। उसके इतना करते ही शिव उससे वार्तालाप करने लगे । बातचीत पूरी होनेपर भिल्ल वहां से चला गया । यह घटना देखकर उस धर्मनिष्ठ ब्राह्मणको बड़ा ही खेद हुआ और वह क्रोधसे शिवको उपालम्भ देते हुए कहने लगा, – “हे शिवजी ! आप भी इस भिल्ल जैसे ही मालूम होते हैं । उस अधमने अशुद्ध शरीरसे आपकी पूजा की, फिर भी आप उसके साथ बोलने चालने लगे; किन्तु आज तक आपने मुझे तो स्वप्न में भो दर्शन नहीं दिये !"
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ब्राह्मणको यह बात सुन शिवने कहा, "हे ब्राह्मण ! क्रोध न कर ! इसका कारण तुझे अपने आप मालूम हो जायगा * इस घटनाको आठ दिन बीत गये। एक दिन शिवकी पूजा करते समय ब्राह्मणने दखा, कि शिवका एक स्वर्ण नेत्र गायव है । वह सोचने लगा, कि अवश्य कोई दुष्ट उसे निकाल ले गया है । यदि वह फिर वहां आये, तो उसे पकड़नेके विवारसे ब्राह्मण वहीं छिप रहा। थोड़ी ही देर में वहां वह भिल्ल आ पहुंचा । उसने शिवको इस अवस्थामें देख तुरत अपनी आंख निकाल कर
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