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*पार्श्वनाथ चरित्र *
उनके लगा दो। शिवजी इससे प्रसन्न हो उठे और बोले-"हे सात्विक ! तू वर मांग !" भिल्लने कहा-"नाथ ! आपको क्यासे मुझे किसी वस्तुकी अपेक्षा नहीं है!” शिवने पुनः कहा,-"हे सात्विक! मुझे केवल तेरा सत्व हो देखना था, सो मैं देख चुका।" यह कह शिवजीने अपना पूर्वनेत्र प्रकट किया और मिल्लका नेत्र फिर उसे लगाकर पूर्ववत् कर दिया। भिल्लको इससे परम सन्तोष हुआ और वह उन्हें नमस्कार कर चला गया। शिवजीने अब उल ब्राह्मणसे कहा,—“हे विप्र! तूने इस भिल्लका मनोभाव देखा ? हम लोग भाव ही देखकर प्रसन्न होते हैं, बाह्य भक्तिसे नहीं।" शिवजीकी यह बात सुन ब्राह्मण भी उन्हें नमस्कार कर वहांसे चला गया । इसलिये हे भव्य जीवो! धर्ममें भी भावहीसे सिद्धि प्राप्त होती है । अतएव लोगोंको यह रहस्य जान कर भाव पूर्वक जिन धर्मको आराधना करनी चाहिये।” इस प्रकार गणधर का धर्मोपदेश सुननेके बाद सब कोई पार्श्वप्रभुको नमस्कार कर अपने अपने स्थानको चले गये। इसके बाद धरणेन्द्रने प्रकट हो भगवानके सम्मुख दिव्य नाटक किया। पार्श्वयक्ष अधिष्ठायक हुआ। प्रभाव पूर्ण, सुवर्ण जैसा वर्ण और कुर्कट जातिके सांपका चाहन प्राप्त कर पद्मावती शासनदेवी हुई। अनन्तर पार्श्वनाथ भगवान् स्वर्ण-कमलोंपर अपने चरणोंको रखते हुए पृथ्वी-तलपर विचरण करने लगे।