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* सप्तम सर्गतकी तीन टेरियां लगानेसे अक्षत सुखकी प्राप्ति होती है।" मुनि का यह वचन सुन अनेक मनुष्य अक्षत पूजा करने लगे।
अक्षतपूजाका यह फल सुनकर शुकीने शुकसे कहा,हमलोग भी अक्षतसे जिनेश्वरकी पूजा क्यों न करें, ताकि अल्पकालमें ही सिद्धि सुख प्राप्त हो।” शुकने इसमें कोई आपत्ति न की, फलतः वे दोनों जिनेश्वरके सम्मुख प्रतिदिन अक्षतकी तीन टेरियां लगाने लगे। उन्होंने अपने बच्चोंको भी यही करनेका आदेश दिया। इस प्रकार वे चारों पक्षो प्रतिदिन जिनेश्वरकी शुद्ध भावसे अक्षतपूजा करने लगे। आयुपूर्ण होनेपर इस पूजाके प्रभावसे चारों पक्षियोंको देवलोककी प्राप्ति हुई।
देवलोकमें स्वर्गसुख उपभोग करनेके बाद शुकका जीव वहांसे च्युत होकर हेमपुर नामक नगरमें राजाके रूपमें उत्पन्न हुआ और उसका नाम हेमप्रभ पड़ा। शुकी इसी राजाकी जयसुन्दरी नामक रानी हुई। दूसरी शुकी भी संसारमें भ्रमण कर हेमप्रभ राजाको रतिसुन्दरी नामक रानी हुई। उस राजाके दूसरी भी पांच सौ रानियां थीं, किन्तु पूर्व संस्कारके कारण वह इन दोही रानियोंपर विशेष प्रेम रखता था। ___ एक बार हेमप्रभ राजाको दाहज्वर हो आया। चन्दनका लेप करनेपर भी वह व्याकुल हो जमीनपर लोटने लगा । क्रमशः उसे अंग-भंग, भ्रम, स्फोटक, शोथ, शिरोव्यथा, दाह और ज्वर--- यह सात विशम रोग हो गये। राजाकी चिकित्साके लिये आयुर्वेद विशारद अनेक वैद्य उपस्थित हुए, उन्होंने राजाकी