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* सप्तम सग *
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अपुत्र है, इसलिये मैं तुझे देता हूं।” यक्षकी यह बात सुन वनजारेको बड़ा ही आनन्द हुआ। सुबह होते ही उसने मन्दिरमें जाकर यक्षकी स्तुति की और वहांसे उस बालकको लाकर अपनी स्त्रीको सौंप दिया। यात्रा से अपने घर पहुंचने पर उसने वनराजको एक ब्राह्मण द्वारा शिक्षा दिलानेका प्रबन्ध किया । इससे वनराजने कुछ ही दिनोंमें विविध विद्या और कलाओंमें पारदर्शिता प्राप्त कर ली । क्रमशः उसकी अवस्था सोलह वर्षकी हुई और उसने युवावस्था में पदार्पण किया ।
एक बार वह वनजारा व्यापारके निमित्त घूमता हुआ वनराजके साथ क्षतिप्रतिष्ठित नगरमें आ पहुंचा । नगरके बाहर एक अच्छे स्थानमें डेरा डालकर वह वनराजको साथ ले, नजराना देनेके लिये राजाकी सेवामें उपस्थित हुआ । वहाँ राजाके सम्मुख नजराना रखकर वह एक और आसन पर बैठ गया; किन्तु वनराज वहीं खड़ा खड़ा सिंहकी भांति चारों ओर देखता रहा। इसी समय राजाके पास बैठे हुए पुरोहितकी दृष्टि वनराजपर जा पड़ी और उसने उसके लक्षण देखकर पूर्ववत् सिर धुना दिया। यह देख राजाने शीघ्र ही उसे एकान्तमें ले जाकर इसका कारण पूछा। पुरोहितने कहा, - " राजन् ! लक्षणोंसे मालम होता है कि यही युवक आपके राज्यका अधिकारी होगा ।"
पुरोहितकी यह बात सुन राजाको बड़ी चिन्ता हो पड़ी । वह अपने मनमें सोचने लगा, कि यह वही मालूम होता हैं । न जाने यह कोई देवता है या विद्याधर ? सेवक द्वारा दो-दो बार