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* पाश्र्श्वनाथ चरित्र *
पानी हो गया। अपनी मुच्छके साथ खेलते हुए उस बालकको देखकर भीमसेनके हृदय में वात्सल्य भाव उत्पन्न हुआ । उसने कहा, – “हे वत्स ! हम लोग नगरके बाहर घूमने जा रहे हैं ।”
इस प्रकार वनराजको फुसलाते हुए भीमसेन उसे एक भयङ्कर जंगलमें ले गया, पर अब उसमें उसको वध करनेकी शक्ति न थी । वनमें सुन्दर नामक एक यक्षका मन्दिर था । उसीमें उसे ले गया और उसी यक्षकी शरण में छोड़कर वह अपने घर लौट आया। इसके बाद कुछ देर में वनराजको भूख लगी, इस लिये उसने यक्षसे कहा, “पिताजी ! मुझे भूख लगी है, लड्डू दीजिये ।” इस प्रकार स्नेहमय कोमल वचन बोलता हुआ वनराज यक्षके पेटपर हाथ फेरने लगा यक्षकी मूर्ति पाषाणमय होनेपर भी वह उसके इन वचनोंसे सन्तुष्ट हो उठी। उसी समय उसने बालकको स्वादिष्ट, सुन्दर, और बढ़िया लड्डू खानेको दिये, जिन्हें खाकर वनराजने अपनी क्षुधा शान्त की ।
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इसी समय यक्षने
देवयोगसे इसी समय वहां सदलबल एक वनजारा आ पहुंचा और उसने इसी मन्दिरके समीप डेरा डाला। इस वनजारेका नाम केशव था । इसके कई बैल खो गये थे, इसलिये चिन्ताके कारण वह अर्धनिद्रावस्था में पड़ा हुआ था उसे दर्शन देकर कहा, – “हे भद्र ! चिन्ता न अपने आप सुबह तुझे आ मिलेंगे। मुझे एक बात और भी तुझसे कहनी है । वह यह कि मेरे मन्दिरमें वनराज नामक एक बालक बैठ हुआ है । उसे सुबह तू अपने साथ लेते जाना । व
कर ! तेरे बैल