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* पाश्वनाथ-चरित्र * घात करानेपर भी यह अभी जीवित ही है । खैर, अब इन बातोंको सोचनेसे क्या लाभ होगा? अब भी समय है-आसानीसे इसका विनाश किया जा सकता है। सब चिन्ता छोड़कर अब इसके लिये यत्न करना चाहिये।
इस तरहकी बातें सोचते हुए राजाने उसके विनाशका एक उपाय खोज निकाला। पांच दिनोंके बाद उसने एक दिन उस बनजारेको बुलाकर पूछा,-"आपके साथ जो एक युवक है, वह कौन है ?" यह सुन केशवने कहा, "यह मेरा पुत्र है।” राजाने कहा,-"अच्छा, उसे कुछ दिन हमारे यहां रहने दो।” केशवने यह सोचकर कि राजाको शत्रु बनामा ठीक नहीं अतएव उसने उसकी यह बात मान ली। इससे राजाने भी प्रसन्न हो, उसके मालका समस्त कर माफ कर दिया।
राजाके पास वनराजको छोड़ते समय केशवको बड़ा ही दुःख हुआ। उसकी आंखोंमें आंसू भर आये। उसने वनराजसे कहा,“हे वत्स! हमलोग राजाका वचन अमान्य नहीं कर सकते इस लिये राजाकी इच्छानुसार कुछ दिन तुम यहीं रहो। जब तबियत न लगे, तब राजाकी आज्ञा लेकर घर चले आना।" यह सुन वनराजने कहा,-"पिताजी! मुझे आपकी आशा स्वीकार है। आप मेरो चिन्ता न करे; मैं आनन्द पूर्वक अपने दिन यहां बिता दूंगा।” इसके बाद पिता पुत्र दोनों जन एक दूसरेको मिल भेंट कर पृथक हुए। राजाने भी वनराजको बहुत कुछ आश्वासन दिया। अब वनराज आनन्दपूर्वक वहां रहने लगा। कुछही दिनोंके