________________
* सप्तम सर्ग
५०६ कुछ दिनोंके बाद राजा नगरमें आया। उसके आते ही राज कुमारने उसे विषा और वनराजको बातें कह सुनायो। यह विपरीत समाचार सुन राजाने अपने मनमें कहा,-"हा देव ! यह तूने क्या किया ? जिसे मैं मारना चाहता हूं, उसकी तो उत्तरोत्तर उन्नति होती जा रही है। मेरा यह दाव भी खालो गया, किन्तु कोई हर्ज नहीं। अब कोई दूसरा दाव आजमाऊंगा।" ___ यह सोचकर राजाने राजकुमारको “बहुत अच्छा हुआ” कहकर विदा कर दिया और आप फिर वनराजके प्राणनाशकी बाजी सोचने लगा। एक दिन उसने गुप्त रूपसे दो मातंगोंको बुलाकर आज्ञा दी, कि आज आधी रातके समय नगरके बाहर कुलदेवीका पूजन करनेके लिये पूजन-सामग्री लेकर जो जाता दिखायी पड़े, उसे उसी समय मार डालना। मातंगोंको यह आक्षा देनेके बाद शामके समय राजाने वनराजको बुलाकर कहा,“युद्धके लिये प्रस्थान करते समय मैंने द्वारवासिनी देवाकी पूजा मानी थी। अतएव तुम आज मध्यरात्रिके समय जाकर उनकी पूजा कर आओ ताकि मैं ऋणमुक्त हो जाऊं।"
राजाके आदेशानुसार वनराज मध्यरात्रिके समय दीपक और पूजन सामग्री लेकर बाहर निकला। महलसे निकलते हो कहीं उसे राजकुमार नृसिंहने देख लिया। उसने उसके पास आकर इस समय बाहर जानेका कारण पूछा। वनराजन सारा हाल बतला दिया, उसे कष्ट से बचानेके विचारसे राजकुमारने कहा,-- “आप महलमें जाकर आराम कीजिये और यह सब सामान मझे दे दीजिये, अभी मैं पूजा किये आता हूं।"