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• पार्श्वनाथ-चरित्र सूर्योदय होते ही उस उद्यानका माली उद्यानमें पहुंचा। सूखे वृक्षोंको आज फल फूलोंसे लदे देख कर उसके आश्चर्यका वारापार न रहा। कुंएके पास गया तो उसमें भो आज निर्मल जल लहराता हुआ दिखायी दिया। जरा आगे बढ़ते ही उस आम वृक्षके नीचे वह सुन्दर बालक पड़ा हुना दिखायी दिया। उसे देखकर वह कहने लगा,-"मालूम होता है कि इस तेजखो बाल. फके प्रतापसे ही यह सूखा हुआ उपवन नवपल्लवित हो उठा है
और मुझे निःसन्तान जानकर वन देवताओंने मेरे लिये ही इस बालकको यहां भेज दिया है। अतएव अब इसे घर ले जाकर पुत्रवत् इसका लालन-पालन करना चाहिये।" ___ यह सोचकर वह उसे अपने घर उठा लाया और अपनी स्त्रीसे कहने लगा कि,–“हे प्रिये ! वन देवताओंने सन्तुष्ट हो कर हम लोगोंको यह पुत्र दिया है। इसे ले और पुत्रवत् इसका पालन कर !" यह कह कर उसने उस बालकको उसे सौंप दिया। साथ ही चारों ओर यह बात फैला दी, कि मालिनको गर्भ था इसलिये आज उसने पुत्रको जन्म दिया है। अब उसने मंगलाचार कर बड़ी धूमके साथ बालकका जन्मोत्सव मनाया और अपने जाति बन्धु तथा स्वजन स्नेहियोंका भोजनादिसे यथोचित सत्कार कर उस बालकका नाम वनराज रखा। इसके बाद वनराज मालीके यत्नसे शुक्ल पक्षके चन्द्रको भांति बढ़ने लगा। क्रमशः बाल क्रीड़ा करते हुए उसकी अवस्था पांच वर्षकी हो गयी।
एक बार वसन्त ऋतुमें मालिन पुष्पाभरण लेकर राज-सभामें