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* पार्श्वनाथ चरित्र *
शरीर बेष्टाका निरिक्षण किया । नाड़ी देखी, मूत्र परीक्षा की और रोगका निदान कर अनेक उपचार किये, किन्तु कोई लाभ न हुआ । मन्त्रवादियोंने आकर अनेक मन्त्र तन्त्रादि किये, किन्तु उनसे भी कोई लाभ न हुआ । भिन्न-भिन्न ग्रहों की पूजा की गयी और उनके निमित्त दान भी दिये गये, किन्तु राजाको शान्ति न मिली । अन्तमें अनेक स्थानों में देवपूजा तथा यक्ष और राक्षसोंकी मानता आदि को गयी ।
अन्तिम उपाय करनेपर एक दिन रात्रिके समय एक राक्षसने प्रकट होकर कहा, "हे राजन् ! यदि आपकी कोई रानी अपने आपको आप पर उतारकर आग में जल मरे तो आपके प्राण बच सकते हैं, अन्यथा नहीं ।" यह कह वह राक्षस तो चला गया, किन्तु राजाको इस बातकी सत्यतापर सन्देह हो जाने के कारण उसने सारी रात संकल्प-विकल्प में बिता दो। सुबह सूर्योदय होने पर राजाने यह हाल अपने मन्त्रीको कह सुनाया । मन्त्रीने कहा“राजन् । जीवन-रक्षा के लिये यह भी किया जा सकता है।" राजाने कहा, "यह ठीक है, किन्तु उत्तम पुरुष पर प्राणसे अपने प्राणकी रक्षा नहीं करते। जो होना हो वह हो, मैं इस उपाय से काम लेना नहीं चाहता ।"
राजाकी इस प्रकार अनिच्छा होनेपर भी मन्त्रीने समस्त रानियोंको इकट्ठा कर उन्हें राक्षसकी बात कह सुनायी । सुनतेही मृत्युभयसे सब रानियां अपना सिर नीचा कर, निरुत्तर हो गयीं । किन्तु रतिसुन्दरीने विकसित वदन और प्रफुल्लित वित्तसे कहा
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