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* सप्तम सर्ग*
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एक मुसाफिर और एक स्त्रीके प्रश्नोत्तर भी ध्यान देने योग्य हैं।
मुसाफिरने एक स्त्रीसे कहा, "हे सुभगे! मैं रास्तेका मुसाफिर हूं। मुझे कुछ मिक्षा दे दो।"
स्त्री,-"इस समय भिक्षा नहीं मिल सकती।"
मुसाफिर,-"याचकको इस प्रकार निराश करनेका क्या कारण है ?"
स्त्री-,"हमारे यहां कुछ दिन हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ है।" मुसाफिर,-"तब तो एफ मासके बाद शुद्धि होगी ?"
स्त्री,-"नहीं, यह पुत्र ऐसा है, कि उसकी मृत्युके पहले कभी शुद्धि हो ही नहीं सकती ?"
मुसाफिर,-"अहो ! ऐसा केसा विलक्षण पुत्र है ?"
स्त्री,-"हमारे यहां यह चित्त भौर वित्तको हरण करनेवाला दारिद्रय रूपी पुत्र उत्पन्न हुआ है।"
यह सुनकर मुसाफिरने अपना रास्ता लिया। यह दरिद्रय निःसन्देह दानके द्वेष रूपी वृक्षका फल कहा जा सकता है।
उपरोक्त भिक्षुक जिधर ही जाता था, उधर हो उसे मिक्षा न मिलने कारण निराश होना पड़ता था। वह अपने मनमें सोचने लगा कि,-"यह कितने खेदकी बात है कि कौव्वेतक अपना पेट भर लेते हैं, किन्तु मुझे कहीं भिक्षा नहीं मिलती। इससे मालूम होता है कि मैंने बहुत ही बुरे पाप किये हैं। ऐसे दुःखदायी जीवनसे तो मृत्यु ही अच्छी। यह सोचता हुआ वह एक दिन देवयोगसे नगरके बाहर एक उद्यानमें जा पहुंचा। वहां उसे परम