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* सप्तम सर्ग *
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खोज करने लगा, किन्तु उसे विशेष परिश्रम न करना पड़ा । राजकुमारका सन्देह दूर होतेहो वह वहां दौड़ आया और पिताके चरणों में लिपट गया। उसी समय राजाने उसे दोनों हाथसे उठाकर छातोसे लगा लिया । उस समय जयसुन्दरी, रतिसुन्दरी राजा और दोनों कुमार सभी वहां उपस्थित थे। सभी एक दूसरेको मिल कर परम आनन्दित हुए जयसुन्दरीने मुनिको नमस्कार पूछा, "हे भगवन् ! किस कर्मके कारण मुझे सोलह वर्ष पर्यन्त पुत्रका यह वियोग सहन करना पड़ा ?" भगवानने कहा, “शु की जन्ममें सोलह मुहूर्त पर्यन्त तुने अपनी सौत शुकीके अण्डेका अपहरण कर उसे जो वियोग दुःख दिया था, उसीका तुझे यह फल मिला है । जो इस जन्ममें किसीको थोड़ा भी सुख या दुःख देता है, उसे दूसरे जन्ममें उससे बहुत अधिक सुख या दुःख भोग करना ही पड़ता है ।"
गुरुके यह वचन सुन कर रतिसुन्दरीने जयसुन्दरीसे क्षमा प्रार्थना कर अपना अपराध मक्षा कराया इसके बाद राजाने पूछा, – “हे भगवन् ! मैंने पूर्व जन्ममें कौनसा सुकृत किया था, जिससे मुझे यह राज्य मिला ?” मुनिने कहा,- के पूर्व जन्मम जिनबिम्ब के सम्मुख अक्षतके तीन पुत्र किये थे । उसीका राज्य प्राप्ति रूपी पुष्प है और इसीके फल स्वरूप तीसरे जन्ममें तुझे मोक्ष प्राप्ति होगी ।”
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इसके बाद हेमप्रभ राजाने रविसुन्दरीके पुत्रको राज्य देकर जयसुन्दरी और उसके पुत्रके साथ दोक्षा ग्रहण की। दुस्तप