________________
• पार्श्वनाथ-चरित्र - शान्त, धर्ममूर्ति और परमज्ञानी एक मुनि दिखायी दिये। उनकी तीन प्रदक्षिणा फर, उदासिन हो, वह उसके पास बैठ गया। उसे देख कर मुनिको बड़ी दया उपजी। अत: उन्होंने उसे धर्मोपदेश देते हुए कहा,-"अहो! जीव समृद्ध होनेपर भी तीनों भुवनमें भ्रमण करते हैं, किन्तु धर्मके अभिज्ञानसे रहित होनेके कारण, वे कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। जिस प्रकार बीज बोये बिना अबकी प्राप्ति नहीं होती, उसी प्रकार धर्मके बिना पुरुषों को इष्ट सम्पत्तिकी प्राप्ती नहीं होती। इसीलिये बाल्यावसामें, दुःखावला या निर्धनावलामें भी और कुछ नहीं, तो केवल श्रद्धापूर्वक देवदर्शन करने भरका धर्म अवश्य ही करते रहना चाहिये।"
मुनिकी यह बात सुन, उस भिक्षुकने हाथ जोड़कर कहा,हे भगवन् ! मैं अनाथ हूं, शरण रहित हूं, और बन्धु रहित हूं। हे स्वामिन् ! इस जन्ममें मुझे किसीने भी अबतक मधुर वाणीसे नहीं बुलाया। सर्वत्र मेरी भर्त्सना ही होती है। अब मैं आपकी शरणमें आया हूं। भुझ डूबते हुए निराधारके लिये आप ही नौका स्वरूप हैं। कृपया मुझे बतलाइये कि देव किसे कहते है ? उनके दर्शन किस प्रकार किये जाते हैं और दशन करनेसे क्या फल मिलता है ?" मुनिने कहा, “हे भद्र ! सुन, पद्मासनपर विराजमान शान्तमूर्ति जिनेश्वरको देव कहते हैं। उनके मन्दिरमें जाकर अमीनपर सिर रख, दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार स्तुति करना चाहिये :
"जित संमोह सर्वज्ञ, यथावस्थित देशक त्रैलोक्यमहित स्वामिन्, वीतराग नमोस्तु ते।"