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* पार्श्वनाथ-चरित्र तप, प्रवज्याका पालन और अनशनके फल स्वरूप आयु पूर्ण होनेपर राजा सातवें महाशुक्र देवलोकमें देवाधिप (इन्द्र) हुआ। जयसुन्दरीका जीव महर्द्धिक देव हुआ और कुमारको भी वहीं देवत्वकी प्राप्ति हुई। वहांसे च्युत होनेपर तोनों को मनुष्यत्व प्राप्त होगा और इसके बाद उन्हें मोक्षकी प्राप्ति होगी।
इसी तरह भावपूजाके सम्बन्धमें भी वनराजको कथा मनन करने योग्य हैं । वह इस प्रकार है :
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वनराजकी कथा।
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इस भरतक्षेत्रमें देवनगरके समान क्षिति प्रतिष्ठित नामक एक नगर है। वहां अरिमर्दन नामक राजा राज्य करता था। इसी नगरमें एक निर्धन और महा दरिद्री कुल पुत्रक रहता था वह . भिक्षाके लिये घर-घर भटकता था और वही उसकी जीविकाका एक मात्र साधन था। ऐसी अवस्था किसी भयंकर पापके ही कारण प्राप्त होती है । किसीने कहा भी है कि सब पदार्थोसे तृण हलका होता है। उससे भी रुई अधिक हलकी होती है और उससे भी भधिक याचक हलका होता है, किन्तु जो याचनाफा भंग करे, उसे तो सबसे जियादा हलका समझना चाहिये। इस सम्बन्ध