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* पार्श्वनाथ-चरित्र * “माता! इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपकी कृपासे राजाने मुझे पटरानी बनाया है। उनका अब मुझपर प्रेम भी पूरा है, किन्तु फिर भी मैं चाहती हूं कि राजाका मुझपर ऐसा प्रगाढ़ प्रेम हो कि जबतक मैं जीवित रहूं तभी तक राजा भी जिये और ज्योंही मेरी मृत्यु हो त्योंही वह भी प्राण त्याग दें।” जोगिनने कहा,"हे वत्से! राजाका तेरे ऊपर अब ऐसा ही प्रेम है।” रानीने कहा,-"सम्भव है कि यह ठोक हो, किन्तु मुझे विश्वास नहीं होता।" जोगिनने कहा, "हे वत्से! यदि तुझे विश्वास न है, तो तू परीक्षा करके देख ले। इसके लिये मैं तुझे एक मूलिका देती हूं। उसे सुंघनेसे तू जीवित होनेपर भी मरेके समान प्रतीत होगी। इसके बाद क्या होता है सो देखना। जब मैं देखूगी कि अब राजाकी परीक्षा हो चुकी तब मैं दूसरी मूलिकाको सुंघा कर तुझे सजीवन करूंगी।" रानीने कहा,-"अच्छा माता, ऐसा ही कीजिये।” इसके बाद योगिन रानीको एक मूलिका देकर चली गयी। ज्योंहो रानीने उसको सुंघा, त्योंही वह मृतवत् मूर्च्छित होकर गिर पड़ी। उसकी यह अवस्था देखकर राजाको बड़ा ही दुःख हुआ। नगरमें भी जब यह समाचार फैला तो चारों ओर हाहाकार मच गया। राजाने तुरत अनेक वैद्य और मान्त्रिकोंको बुलाकर इकट्ठा किया, किन्तु वे सब कुछ भी न कर सके। उन्होंने रानीको मृतक समझ कर उसका अग्निसंस्कार करनेकी सलाह दे दी। उनके चले जानेपर रानीके अग्निसंस्कारकी तैयारी होने लगी। यह देख राजाने कहा, "रानीके साथ मैं भी जल