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* पार्श्वनाथ-चरित्र * कुछ दिनोंके बाद एक दिन बुढ़ियाने वयरसेनसे पूछा--"बेटा! मैं तो उस विद्याधरके वस्त्रोंमें लटक कर यहां चली आयी; परतू यहां कैसे आया और रोज इतना धन कहांसे लाता हैं ?" यह सुन वयरसेनने कहा, "माता! मैंने वहां कामदेवकी आराधना की थी अतः उन्होंने मुझे बहुत सा धन देकर यहां पहुंचा दिया।" बुढ़ियाने फिरसे पूछा,-"कामदेवने केवल धन ही दिया है या और भी कोई वस्तु दी है ?" वयरसेनसेने कहा,-"हां, उन्होंने मुझे एक दिव्य औषधि भी दी है। जिसको सूघनेसे बूढ़ेको भी नवयौवनकी प्राप्ति होती है।”
यह सुनकर बुढ़ियाको बहुत ही आश्चर्य हुआ। उसने वयरसेनसे कहा,-“हे वत्स! मुझे वह औषधि सुधा दे ताकि इस बुढ़ापेसे छुटकारा पा जाऊ। यह सुन वयरसेनने कहा-"माता! वह औषधि विशेष कर तुम्हारे ही लिये लाया हूं। यथा समय अवश्यही उसका प्रियोग करूंगा।" यह सुन बुढ़ियाने कहा"अच्छे कामके लिये अवसरकी प्रतीक्षा करना ठीक नहीं। इसी समय मुझे उस औषधीको सुंघा दे। इस तरह बुढ़ियाका आग्रह देख चयरसेन कथा और दण्ड ले आया। इसके बाद उसने बुढ़िया को रासभकरण पुष्प सुंघा दिया। यह फूल सूघतेही वह रासभी (गधी ) बन गयी। यह देखकर वयरसेनको बड़ाही आनन्दःहुआ
और उसने बुढ़ियासे सब दिनकी कसर आज ही निकालना स्थिर किया। उसी समय कथाको कन्धे पर रख वह दण्डसे गधीको पीटते हुए नगरमें घूमने लगा। यह देख मगधाने कहा,-"यह