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४७० * पार्श्वनाथ चरित्र * वालने कहा,-"स्वामिन् ! वह धूर्त तो बड़ा ही जबर्दस्त मालूम होता है। उससे भिड़ना मेरी शक्तिके परेका काम है। यह सुन राजाने शस्त्रास्त्रोंसे सुसजित अनेक सुभटोंको भेज कर वयरसेनको गिरफ्तार करनेकी आज्ञा दी। साथ ही मन्त्री और राज्यके अधिकारीगण भी यह कौतुक देखनेके लिये वहां जा पहुँचे। राजाके भेजे हुए सुभट ज्योंही वयरसेनके समीप पहुँचे, त्यों ही उसने दण्ड घुमाना शुरू कर दिया। फिर किसकी मजाल थी जो वहां ठहर सके ? देखते-ही-देखते सब लोग भाग खड़े हुए। राजा अमरसेनने जब यह हाल सुना तो वह स्वयं अनेक सुभटोंके साथ घटना स्थलपर उपस्थित हुआ। राजाको देखकर वयरसेन अब गधीको और भी पीटने लगा। इससे वह जोरोंसे चिल्लाने लगी। यह देख कर लोग हंसने लगे और कहने लगे-“अहा ! कैसा देखने योग्य दृश्य है। एक ओर राजा गजारूढ़ है और दूसरी ओर धूर्त खरारूढ़ है।” वयरसेन गधीको पीटता-पीटता राजाके सम्मुख आ उपस्थित हुआ। उसे देखते ही अमरलेनने पहचान लिया और उसी समय उसने हाथीपरसे उतरकर वयर. सेनको गलेसे लगा लिया । पश्चात् अमरसेनने पूछा-“हे वत्स! यह अनुचित कार्य क्यों कर रहा है ?" अमरसेनकी यह बात सुन वयरसेनने उसे सारा हाल कह सुनाया। इसके बाद उसने गधीको एक वृक्षते बांध दिया और भाईके साथ हाथीपर सवार हो शहरमें प्रवेश किया। जब यह वृत्तान्त लोगोंको मालूम हुआ, तो वे कहने लगे कि बुढ़ियाको उसके कर्मानुसार ठोक ही सजा