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• सप्तम सर्ग * हुए कहा, "यह चिन्तामणि रत्न है। इसके प्रभावसे चिन्तित कार्य सिद्ध होता है। इससे तुम जो मागोगे, वह तुम्हें तत्काल मिलेगा।” सुविनीतको यह दोनों चीजें पाकर बड़ा ही आनन्द हुआ। उसने उस फलको गलेमें बांध लिया और शाल्मलिके पञ्चांग एवम् चिन्तामणि रत्नको बड़ी सावधानीके साथ अपने पास रख लिया। इसके बाद शुक और शुकीकी आज्ञा प्राप्त कर उसने वहांसे प्रस्थान किया। कुछ ही समयमें वह वहांसे अपने पिताके डेरेपर आ पहुंचा और उनको प्रणाम कर पञ्चाङ्ग तथा रत्न दोनों चीजें उनके सामने रख दी। इससे कनकको बड़ा आनन्द हुआ। उसने उस रत्नके प्रभावसे अपने समस्त मंगियोंको अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन कगया और वस्त्राभूषण आदि दे उन्हें सन्तुष्ट किया।
दान कदापि निष्फल नहीं जाता। किसीने अक ही कहा है, कि दिसा सुपात्रको लक्ष्मीका निधान रूपी और अनर्थको दलन कोबाला दान करता है, उसका ओर दारिद्र नजर भी नहीं कर सकता । दुर्भाग्य और अपकार्ति उससे दूर रहती हैं। पराभव और व्याधि उसके पीछे नहीं रहते। दैन्य और भय तो उलटे उससे डरते हैं। इसी त ह और भी कोई आपत्ति उसे पीड़ित नहीं कर सकती।
इसके बाद कनकने बहुतसाधन सत्कार्यमें खर्च किया, क्योंकि चिन्तामणि रत्नके प्रभावसे उसकी समस्त इच्छायें अनायास पूरी हो जाती थीं। एक दिन कनकने शुकराजसे पूछा, -- “हे शुक