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* पार्श्वनाथ चरित्र *
परोसने की आज्ञा दी । यह देख उस सेवकने कहा, “अब मुझे और भोजन नहीं चाहिये, क्योंकि मैंने आज उपवास किया है।" यह सुन अभयंकरने पूछा - " तब तूने पहले भोजन क्यों परोस वाया था ?” सेवकने कहा, “मैंने किसी मुनिको दान देनेके उद्देशसे ही वह अन्न ग्रहण किया था ।" यह सुनकर अभयंकर सेठको बड़ाही आनन्द हुआ। अब वह अपने इन दोनों सेवकोंको विशेष आदरपूर्वक रखने लगा। इधर दोनों सेवक भी प्रतिदिन चैत्यमें जाते थे । एवं मुनि वन्दन और नमस्कार मन्त्रका पाठ करते हुए अधिकाधिक धर्मसाधना करने लगे। उन्हीं दिनों कलिङ्ग देशमें शूरसेन नामक एक राजा राज्य करता था । एक बार शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया; इसलिये वह कुरुदेश चला गया और वहां हस्तिनागपुरके अचल नामक राजाके पास शरण ली। इससे अचल राजाने उसे निर्वाहके लिये पचास गांव दे दिये। अब शूरसेन उन गावों मेंसे सुकरपुरको अपनी राजधानी बनाकर वहीं रहने गला । शूरसेनके दो स्त्रियें थीं, जिनमें एकका नाम विजयादेवी और दूसरीका नाम जयादेवी था । विजयापर राजाका विशेष स्नेह था ।
अभयंकरके उपरोक्त सेवकों की मृत्यु होनेपर वे दोनों इसी विजयाके उदरसे पुत्र रूपमें उत्पन्न हुए । इनमें से दान करनेवाला सेवक बड़ा भाई हुआ और उसका नाम अमरसेन रखा गया । जिन पूजा करनेवाला सेवक छोटा भाई हुआ और उसका नाम वयरसेन रखा गया । पूर्व जन्मके प्रभावसे उन्होंने यहांपर कुछ