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* सप्तम सर्ग
४५५ और चामर-यह पांच देवाधिष्टित चीजें नगरमें घुमायी जाने लगीं। यह सब चीजें नगर भरमें घूम आयीं, किन्तु इन्हें कहीं भी राज्यासनपर बैठाने योग्य पुरुष न मिला। अन्तमें यह चीजें नगरके बाहर निकली और घूमती हुई जहां अमरसेन सो रहा था, वहां जा पहुंची। वहां पहुंचते ही कलशका जल अपने आप अमरसेनपर ढल गया, और अश्वने हिन हिनाहट किया। हाथीने गर्जना कर अपनी सूढ़से अमरसेनको उठा कर पीठपर बैठा लिया। छत्र अपने आप खुल गया और चामर स्वयं डुलने लगे। यह देखते ही मन्त्री प्रभृति अधिकारी और प्रजागण समझ गये कि यही हमारा भावी राजा है। अतः उन्होंने अमरसेनको दिव्य वस्त्रा भूषणोंले सजित कर बड़े समारोहके साथ नगर प्रवेश कराया। इसके बाद यथा विधि अमरसेनका राज्य भिषेक हुआ और कई दिनोंतक उत्सव मनाया गया। इस प्रकार फलके प्रभावसे अमरलेनको राज्यको प्राप्ति हुई और वह बड़ी योग्यताके साथ नोति पूर्वक राज करने लगा।
इधर वयरसेन जब भोजन सामग्री लेकर नगरसे लौटा तब उद्यानमें उसने अपने भाईको न पाया। पता लगानेपर जब उसे उसकी राज्य-प्राप्तिका हाल मालूम हुआ, तब वह अपने मनमें कहने लगा,-"बड़े भइयाने जब राज्य स्वीकार करनेमें मेरी राह न देखी, तब मुझे अब उसके पास क्यों जाना चाहिये ? इस . प्रकार उसके पास जाना बड़े अपमानकी बात होगी।" किसीने कहा भी है कि व्याघ्र और गजेन्द्रसे पूरित वनमें रहना अच्छा है,