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* पार्श्वनाथ चरित्र *
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कौन है और यहां कैसे आ पहुँचा ?” यह सुन कुमारने उसे सब हाल कह सुनाया । पश्चात् विद्याधरने उसे धैर्य देते हुए कहा,"हे भद्र ! इस समय मैं तीर्थयात्रा करने जा रहा हूं । पन्द्रह दिनमें वहांसे लौटूंगा । उस समयतक तू यहीं रहना । मेरे आनेके बाद तू जहां कहेगा, वहां मैं तुझे पहुंचा दूंगा । किन्तु देख, यहां मन्दिर के चारों ओर देवताओंके विलास करनेके लिये बगीचे बने हुए हैं। इनमें से पूर्व दक्षिण और उत्तर दिशाके बगीचोंमें तू जा कर फलाहार और जलक्रीड़ा कर सकता है, किन्तु चैत्यके पीछे पश्चिम दिशामें जो उद्यान है, उसमें भूलकर न जाना ।” यह कह विद्याधरने वयरसेनको लड्डु आदि कुछ खानेका सामान दे, वहांसे प्रस्थान किया । अनन्तर वय सेन भी वहीं वनफल खाकर कामदेवकी पूजा करते हुए समय बिताने लगा ।
एक दिन वयरसेन बगिचोंकी सैर करने निकला। पहले वह पूर्व दिशाके बगीचे में गया । उसमें दो ऋतुएं दिखायी देतीं थीं 1 आधे बगीचे में वसन्त ऋतु होनेके कारण आम्र और चम्पकादि वृक्ष विकसित हो रहे थे । कोकिलायें पञ्चम स्वरमें कूक रही थीं और चम्पकके पुष्पोंसे समूचा वन सुगन्धित हो रहा था आधे बगीचेमें ग्रीष्मऋतु होनेके कारण वह ग्रीष्मकालीन फूलोंकी सुगन्ध फैल रही थी। वापिकामें जलक्रीड़ा कर फलाहार किया । इसके बाद वह दक्षिण दिशाके बगीचे में गया । उसमें भी दो ऋतुओंकी बहार दिखायी देती थी। आधे बगीचेमें वर्षा ऋतु होनेके कारण
यहां वयरसेनने
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