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* सप्तम सर्ग *
४६३ तूही क्यों न पूछ ले ?” पुत्रीसे यह उत्तर मिलनेपर मगधाने एक दिन स्वयं चयरसेनसे पूछा कि,–“हे वत्स ! तुम इतना धन कहांसे लाते हो ?" यह सुन वयरसेनने कहा-"माता! यह बात किसीको बतलाने योग्य नहीं है, किन्तु फिर भी तुमसे कोई वात छिपी न होनेके कारण मैं बतलाता हूँ। मेरे पास विद्याधिष्टित दो पादुकायें हैं, उनपर खड़ा हो मैं आकाशमार्गसे इन्द्र के भण्डारमें जाता हूँ और वहांले आवश्यक धन ले आता हूं।" वयरसेनकी इस बातको उसने सव मान लिया और किसी तरह उन पादुकाओंको अपने हाथ करनेकी युक्ति सोचने लगी।
कुछ दिनोंके बाद एक दिन उसने बीमारीका ढोंग किया। वह एक टूटो खाटपर सो रही और पेटमें शूल वेदना होनेका हाना करने लगा। उसे इस तरह देख वयरसेनने जब उससे बोमाराके सम्बन्ध में पूछताछ का, तब उसने कहा,-“हे वत्स! क्या कहूं ? चात कहने योग्य नहीं हैं, पर तेरा आग्रह देखकर कहती हूं। जब तू हमारे यहां चला गया था, तब मैंने समुद्र स्थित कामदेवकी पूजा करने की जानता भानो थी, किन्तु वहां जाना बहुत हो कठिन होनेके कारण मैं अभी तक उस मानताको पूरी नहीं कर सकी। इसी लिये कामदेव मुझे यह कष्ट दे रहे हैं।"
बुढ़ियाकी यह बात सुनकर वयरसेनने सोचा कि यह बहुत ही अच्छा मौका मिल रहा है । इस दुष्टाको इस बहाने अपने साथ ले जाकर समुद्रमें डाल आऊंगा। यह सोचकर उसने कहा,“माता! यह काम मेरे लिये बहुत सहज है। तुम मेरे साथ