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* सप्तम सर्ग *
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निश्चय किया, कि इस समय मुझे केवल देव की ही शरण चाहिये ; क्योंकि ऐसे अवसरपर दैव ही कोई उपाय दिखला सकता है।
इस प्रकार सोचता हुआ वयरसेन सारा दिन नगरमें भ्रमण करता रहा और शामको नगरके बाहर चला गया। वहां श्मशानमें एक खंडहर था, उसोमें रात बितानेका निश्चय कर बैठ गया। उस समय कहों उल्लू बोल रहे थे, तो कहीं शृगाल चिल्ला रहे थे, कही हिंसक पशु घूम रहे थे, किन्तु वयरसेन इन सबोंको देखकर लेशमात्र भी विचलित न हुआ और सारी रात जागते हुए वहीं बैठा रहा। किसीने ठोक ही कहा है, कि उद्यमसे दरिद्र नष्ट होता है, जपसे होता है, मौन रहनेसे कलह का नाश होता है और जाग्रत रहनेसे भय दूर हो जाता है।
दैवयोगसे श्मशानमें आधिरातके समय चार चोर आये और वे कोई वस्तु बाँटनेके लिये आपसमें टंटा-फिसाद करने लगे। वयरसेनने उनको बातें सुन चोरोंको ही भाषामें उनसे कुछ कहा। इससे चोरोंने समझा, कि यह भी कोई चोर है, अतएव उन्होंने उसे अपने पास बुलाया। उसो समय वयरसेन उनके पास गया और उनसे कहने लगा, कि-"तुम लोग इस तरह झगड़ा क्यों कर रहे हो।" यह सुन चोरोंने कहा,-"हमारे झगड़ेका कारण यह है, कि हम लोगोंको चोरीमें एक कन्था, एक दण्ड और पादुका-यह तीन चीजें मिलो हैं किन्तु हम लोग चार जन हैं। किसी तरह बांटते नहीं बनता, इसीलिये