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* पार्श्वनाथ चरित्र * है कि यह सब विमाताको करतूत है ।" क्यरसेनने पूछा, “क्या पिताजीने माताकी असत्य बातोंपर विश्वास कर लिया होगा ?" अमरसेनने कहा,–“हे वत्स ! तुम अभी नादान हो, इसी लिये ऐसा प्रश्न पूछते हो। स्त्रियां असत्यका घर कहलाती हैं । रागान्ध पुरुष उनके असत्य वचनोंको भी सत्य मान लेते हैं। बुद्धिमान् मनुष्य गङ्गाकी बालुकाके कण गिन सकता है, समुद्रके पानीका थाह लगा सकता है और मेरु पर्वतको भी तौल सकता है, किन्तु स्त्री चरित्रको वह कदापि नहीं जान सकता। भाई ! पिताजीने जो किया सो ठीक ही किया और जो हुआ सो भी ठीक ही हुआ; क्योंकि इस बहाने हम लोगोंको देशाटन करनेका अपूर्व अवसर मिला है, जिससे निःसन्देह हम लोगोंको बड़ा ही लाभ होगा। मैं तो इस घटनाको ईश्वरकी एक कृपाही समझता हूं।" इस तरहकी बातें करते-करते अमरसेनको नींद आ गई और वयरसेन सजग हो वहीं बैठकर पहरा देने लगा। ___ इसी समय उस वृक्षपर शुक और शुकीका एक जोड़ा आ बैठा। शुकने शुकीसे कहा, "हे प्रिये ! यह दोनों पुरुष बड़े ही सजन हैं अतएव इनका कुछ सत्कार करना चाहिये।” यह सुन शुकीने कहा,-"आपने बहुत ही ठीक कहा। आपको खयाल होगा कि सुकुट पर्वतकी एक गुफामें विद्याधरोंने दो आभ्रवृक्ष लगाये हैं। उन आम्रवृक्षोंके बीज मन्त्रसे अभिषिक्त होनेके कारण उनमें बहुत ही विलक्षण गुण आ गया है। उनका एक फल खानेसे सात दिनमें राज्य मिलता है और दूसरे फलकी