________________
४५०
* पाश्वनाथ चरित्र #
उसे बहुत ही क्रोध हुआ। उसने सोचा कि इन दोनों दुष्ट और दुराचारी पुत्रोंको प्राण दण्डकी सजा देना चाहिये । यह निश्चय कर उसने चण्ड नामक मातंगको बुलाकर आज्ञा दी, कि "दोनों राजकुमारोंको नगरके बाहर ले जाओ और इनके सिर काटकर मेरे पास ले आओ ।" यह सुन मातंग आश्चर्य में पड़ गया । वह राजाके इस भीषण क्रोधका कारण न समझ सका । राजाको क्रोधित देख इस समय अनुकूलता दिखाने में ही लाभ समझ उसने कहा - "आपकी आज्ञा खोकार है । इसके बाद वह राजकुमारोंके पास गया और उन्हें राजाको आज्ञा कह सुनायो । सुनकर राजकुमारोंने कहा, "अच्छी वात है । शीघ्रही पिताजीकी आज्ञा पालन करो। हम दोनों जन इसके लिये तैयार हैं । यह सुन मातंगने कहा, "नहीं, मैं यह नहीं करना चाहता । तुम दोनों जन शीघ्रही यह देश छोड़ कर कहीं विदेश चले जाओ ।" राजकुमारोंने कहा,- -" हम लोग चले जायेंगे, तो विपत्तिका सारा पहाड़ तुम्हारे ही सिरपर टूट पड़ेगा । उस समय पिताजी न केवल तुम्हारे ही प्राणके ग्राहक बनेगे, बल्कि तुम्हारे परिवारको भी जीता न छोड़ेंगे। अतएव अपने बदले तुम्हें उनकी क्रोधाग्निमें भस्म होने देना हमें पसन्द नहीं है । यह सुन मातंगने कहा, - "आप मेरी चिन्ता न कीजिये। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि किसी न किसी तरह अपनी प्राण रक्षा अवश्य कर लूंगा । अब आप लोग शीघ्र ही यहांसे प्रस्थान कीजिये ।”
अन्तमें राजकुमारोंने मातंगका कहना मान लिया और उसके