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* सप्तम सर्ग- . ४५१ कथनानुसार अपने घोड़ोंको वहीं छोड़, पैदलही वहांसे चल पड़े। इधर मातंगने राजाको धोखा देनेके लिये बड़ी चतुराईके साथ मिट्टोके दो सिर बनाये और उनार लाखका रंग चढ़ा, शामके वक्त वह राजकुमारोंके घोड़े और दोनों नकली सिर लेकर राजाके पास पहुंचा और दूरहोसे उन्हें वे सिर दिखाकर कहा,-"खामिन् ! आपके आदेशानुसार राजकुमारोंको मार कर उनके सिर ले आया हूं।" यह जानकर राजाको बड़ो खुशा हुई, उसने आशा दी कि,-"गांवके बाहर किलो गढ़ेमें इन्हें फेंक आओ!” यह सुन मातंग “जो आज्ञा" कहता हुआ वहांसे चलता बना। इधर जयाने समझा कि वास्तवमें दोनों राजकुमार मार डाले गये। इसले वह भा अपने मनमें बड़ी खुशो मनाने लगी।
इसके बाद दोनों राजकुमार अविछिन्न प्रयाण करते हुए कई दिनोंके बाद एक ऐसे जंगलमें जा पहुंचे, जो नाना प्रकारके वृक्ष
और वन्य पशुओंसे पूर्ण हो रहा था। यहां उन दोनोंने आघ्रफल खाकर नदाका शोतल जल पिया और वहीं एक वृक्षके नीचे लेट कर विश्राम करने लगे। धीरे-धोरे शाम हो गयी। सूर्यास्त होनेपर आकाशमें तारे निकल आये और चारों ओर अन्धकारका साम्राज्य हो गया। अतः राजकुमारोंने वहीं रात काटना स्थिर किया। जब थकावट दूर हुई तो वे दोनों आपसमें यातचीत करने लगे। छोटे भाईने बड़े भाईसे पूछा,--"भाई ! पिताजीके क्रोधका कोई कारण मालूम हुआ ?” अमरसेनने कहा,-"नहीं, क्रोधका ठीक-ठीक कारण तो मैं नहीं जानता; पर मेरी धारणा