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* पाश्वनाथ चरित्र मुझनेपर वह एक स्थानमें बैठकर ठण्डी सांसे लेने लगा। उसी समय अचानक वहां एक शुकयुगल आ पहुँचा, उसे देखकर सुविनीनको बड़ा ही आनन्द हुआ और उसने उस युगलको अपने पास बुला कर बैठाया। पश्चात् शुकने उसका परिचय पूछते हुए कहा,-"तुम कौन हो और कहासे आये हो ?" शुकका यह प्रश्न सुनकर सुविनीतने उसे सारा हाल कह सुनाया। सुनकर शुफने कहा,-"वह शुक मेरा भाई है। कहिये, वह और शुकी दोनों जन प्रसन्न तो हैं ?" यह सुन सुविनीतने कहा,-"हां, वे दोनों जन सकुशल हैं। शुकने कहा,-"अच्छा, अब यह बतलाओ कि तुम ठंढी सांसें क्यों ले रहे थे ?” सुविनीतने कहा,"तुम्हारे भाईके बतलाये हुए उपायसे मैं यहांतक तो आ पहुँचा, किन्तु अब यहांसे लौटनेका कोई उपाय दिखायी नहीं देता।" विनीतकी यह बात सुनते ही शुकी एक ओरको उड़ गयी और कहींसे एक फल ले आयी। शुकने वह फल सुविनीतको देते हुए कहा, "इस फलको गलेमें बांध लेनेपर आकाश मार्गसे एक पहरमें सौ योजन जानेकी शक्ति पाप्त होती है। यह सुन सुविनीत उस फलको लेकर शुक और शुकीको अनेकानेक धन्यवाद देने लगा। तदनन्तर शुकीने शुकसे कहा, "हे नाथ ! इस मनुष्यके पास मार्गमें खाने-पीनेका भी कोई सामान नहीं है अतएव इसे कुछ देना चाहिये।” शुकने कहा,-"जो तुम्हें अच्छा लगे वह ला दो। शुकी फिर उड़ी और पर्वतके एक कोटरसे एक चिन्तामणि रत्न ले आयी। वह रत्न उसने सुविनीतको देते