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* सप्तम सर्ग.
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फल, काष्ट आदि पञ्चाङ्ग यहां ले आना फिर मैं तुम्हें आगेका कर्तव्य बतलाऊँगा।"
शुककी यह बात सुन कनकने सोचा, कि इस कामके लिये ज्येष्ठपुत्र सुविनीतको भेजना चाहिये। इस कामके लिये वह सर्वथा उपयुक्त है। यह सोचकर उसने ज्येष्ठपुत्रको बुलाया और उसे सब बातें समझा कर कहा, "हे भद्र ! यह काम जल्दी कर आओ। सुविनीतने कहा,-"पिताजी! आपकी आज्ञा मुझे स्वीकार है, यह कह वह आंखोंपर उस लतापत्रकी पट्टी बांध, गरुड़ बन गया और उसी समय चिटक पर्वत की ओर प्रस्थान किया। शुक कुछ दूरतक रास्ता दिखानेके लिये उसके साथ गया। चलते समय सुविनीतको फिर एकबार सूचना देते हुए उसने कहा,-"हे सात्विक! मार्गमें जिस पर्वत पर तुझे ककडोको गंध आये, उसो पर्वतपर रूक जाना और आंखकी पट्टी खोलकर उस वृक्षके पञ्चाङ्ग ले आना। ___ इस प्रकार सूचना देकर शुक लौट आया और सुविनीत पवास योजन उड़कर उस पर्वतपर पहुँचा। वहां उसने आँखकी पट्टी खोल डाली। पट्टी खोलते ही वह फिर मनुष्य हो गया। उसने शाल्मली वृक्षको बतलायी हुई निशानियोंसे पहचान कर उसके पञ्चाङ्ग संग्रह किये और वहांसे चलनेकी तैयारी की। किन्तु उस पट्टीमें अब मनुष्यको गरुड़ बनानेका गुण न था अतएव सुविनोतको चिन्ता हो पड़ी, कि अब क्या किया जाय और यहांसे किस प्रकार वापस जाया :जाय ? अन्तमें कोई उपाय न