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• सप्तम सग *
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उसने उसके आदेशानुसार जिन-प्रतिमा तैयार करायी और उस प्रतिमाको शुभ स्थानमें प्रतिष्ठित कर उसकी पूजा और भक्ति आदि महोत्सव मनाया। इसके साथ ही उसने उस स्थानमें गीत और नाट्यादिक करानेका भी प्रबन्ध किया। कनकके इस कार्यसे परम सन्तुष्ट हो धरणेन्द्र, पद्मावती और वैरोट्या आदि देवी-देवता उसे सहायता करने लगे। इसके बाद कनकने स्पर्श पाषाणके समस्त टुकड़े यत्न पूर्वक अपने पास रख लिये। अब वह उस प्रतिमाको अपने साथ ले सिंहलद्वीप जानेकी तैयारी करने लगा। यह देखकर शुकने कहा अब मैं अपने स्थानको जाता हूं। कनकने कहा,--"हे शुकराज! तुम मुझे प्राणसे भी अधिक प्रिय हो। तुमने मुझपर बड़ा ही उपकार किया है । कृपाकर यह तो बताओ कि तुम देव हो, विद्याधर हो या कौन हो? तुम्हारा निवास स्थान कहाँ है ?" यह सुन शुकने कहा,--“हे श्रेष्ठिन् ! कुछ दिनों के बाद मेरा असली रूप तुम्हें केवलो भगवान बतलायेंगे।” यह कह शुक और शुभोने अपना देव रूप प्रकट कर देवलोकके लिये प्रस्थान किया। वहां शाश्वत जिन प्रासादमें अट्ठाई महोत्सव कर वह दोनों देव अपने विमानमें सुख पूर्वक रहने लगे। ___ अब कनकने निश्चिन्त हो, सिंहलद्वीपके लिये प्रस्थान किया। मार्गमें उसे उसके वे अनुचर भी मिल गये, जिन्हें उसने किरानेका भाव लानेके लिये पहले ही सिंहलद्वीप भेजा था। उन अनुचरोंने कनकसे कहा,-"स्वामिन् ! शीघ्र चलिये, इस समय फिरानेका भाव बहुत तेज है। अपना माल बेच देनेपर हम