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* पार्श्वनाथ चरित्र
मनुष्यलोक में शुक और शुकीके रूपमें उत्पन्न होकर अपना जीवन व्यतीत करोगे । इन्द्रका यह शाप सुनकर दोनों देव कांप उठे ।” उन्होंने इन्द्रसे पूछा – “भगवन् ! हमें इस शापसे मुक्ति कब मिलेगी ?" यह सुन इन्द्रने कहा, “तुम लोगोंका एक मित्र यहां है । उसका जीव यहांसे च्युत होकर कनक नामक एक वणिकके रूपमें उत्पन्न होगा । वह जब स्पर्श पाषाणकी प्रतिमा बनवाकर उसको पूजा करेगा, तब तुम शापसे भुक्त होंगे। तदनुसार दोनों देवता शुक और शुकीके रूपमें उत्पन्न हुए और तूने देवत्वसे च्युत होकर यहां जन्म इन्द्रके कथनानुसार ही शुकने तुझसे स्पर्शपाषाणकी प्रतिमा बनवाकर शाप से मुक्ति लाभ की । इसके बाद उन दोनोंने नन्दीश्वर द्वीपमें जाकर शुकरूपका त्याग किया और वहीं देवरूप धारणकर अठ्ठाई महोत्सव मनाते हुए वे देवलोकको चले गये और अपने अमृतसागर नामक विमानमें सानन्द जीवन व्यतीत करने लगे ।”
इस प्रकार केवली भगवानके मुंहसे शुकका वृत्तान्त सुनकर कनकश्रेष्ठी और केदार राजाको वैराग्य आ गया और इन दोनोंने दीक्षा ले लो। इसके बाद निरतिचार चारित्रका पालन करते हुए हुए अन्तमें वे अनशन कर पांचवें ब्रह्मदेव लोकमें दस सागरोपम की आयुवाले देव हुए। वहांसे च्युत होनेपर उन्हें महाविदेह क्षेत्र में सिद्धपदकी प्राप्ति होगी ।
हे भव्य प्राणियो ! जिस प्रकार रावणने जिनपूजासे तिर्थंकर गोत्र उपार्ज किया, उसी तरह अन्य जीवोंकी भी जिनपूजासे स्वर्ग
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