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* पाश्र्श्वनाथ चरित्र *
आज साधारण वेशमें होनेपर भी तेरा चेहरा क्यों चमक रहा है ?” राजाकी यह बात सुनकर वसन्तकने कहा - " हे नाथ ! आप मुझे शूलीपर चढ़ानेकी आज्ञा दे चुके थे अतएव सदा मेरे कानों में उन्हीं शब्दोंको भनक आया करती थी । उस दिन से मुझे सारा संसार सुना दिखायी देता था । जल और अन्न विषके समान मालूम होता था । मुलायम गद्दे काँटोंकी शैयाके समान मालूम होते थे और घोड़ा गधेकी तरह दीखता था - इसी तरह सभी मुझे विपरीत मालूम होते थे । सदा मेरे नेत्रोंके सम्मुख मृत्यु नाचा करती थी, इसलिये सुखके साज भी मुझे दुःखदायक प्रतीत होते थे । आज आपने शीलवती रानीकी प्रार्थना स्वीकार कर मुझे जो अभयदान दिया है, उसके कारण मुझे अब सारा संसार आनन्द प्रद दिखायी दे रहा है ।"
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इसी समय शीलवती रानी भी वहां आ पहुंची। उसने राजासे निवेदन किया कि - "हे नाथ ! आप इसे स्वयं अपने मुख से अभयदान दीजिये ।" यह सुन राजाने कहा -- "तथास्तु | मैं इसे अभयदान देता हूं। क्या तुझे और भी कुछ कहना है ?” रानीने कहानहीं, नाथ! आपकी कृपासे मुझे किसी बातकी कमी नहीं हैं । मैं पूर्ण रूपसे सुखी हूं।" रानीके यह शब्द सुनकर राजा अपने मनमें कहने लगा- “अहो ! धन्य है इसके गाम्भीर्यको, धन्य है इसकी परोपकार बुद्धिको और धन्य है इसके वचन - माधुर्यको ! वास्तव में इसीके पुण्य प्रतापसे मेरा राज्य बढ़ रहा है!” इसके बाद दिन प्रतिदिन इस रानीके प्रति राजाका अनुराग बढ़ता गया और