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* पार्श्वनाथ चरित्र #
धारण करती है और सर्पको दूध देनेसे वह भी विषरूप हो जाता है, इसलिये पात्रापात्रका विचारकर सुपात्रको दान देना उत्तम है ।
इस प्रकारके उत्तम पात्र केवल साधु हो कहे जा सकते हैं । सत्ताईस गुणोंसे युक्त, पंच महाव्रत के पालनेवाले और अष्ट प्रवचन माताके धारक होनेके कारण साधु ही उत्तम पात्र हैं। सिद्धान्तमें भी कहा है कि सबसे उत्तम पात्र साधु और उससे मध्यम पात्र श्रावक और उससे जघन्य पात्र अविरति सम्यग् दृष्टिको जानना चाहिये । इस प्रकार साधु प्रधान पात्र होनेके कारण उन्हें पहले दान देना चाहिये । इसके अतिरिक्त स्वधर्मानुयायीको भी दान देना चाहिये । श्री सिद्धान्त में कहा है कि तथा प्रकारके श्रमण माहण (साधु) को प्रासुक और एरणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थोंका दान देनेसे प्राणी आयुके अतिरिक्त अन्यान्य सात कर्मोंकी निबिड़ प्रकृतियोंको शिथिल करनेमें समर्थ होता है और इससे अनेक जीव उसी जन्ममें मोक्ष प्राप्त करते हैं, अनेक जीव दो जन्प्रमें समस्त दुःखोंका अन्त कर सिद्ध होते हैं, जघन्यसे ऋषभ देव स्वामीके जीवकी तरह तेरह जन्मका उल्लंघन तो करते ही नहीं ।
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सरलभाव से भी सुपात्रको दान देनेसे सिद्धि प्राप्त होती है इस सम्बन्धमें निम्नलिखित दृष्टान्त विचारणीय है :
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महाविदेह क्षेत्रमें पुष्कलावती विजयमें जयपुर नामक एक नगर है। वहां जयशेखर नामक राजा राज्य करता था। वहां पर चार वणिक पुत्रोंमें परस्पर गहरी मित्रता थी । उनमेंसे एकका नाम