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* पार्श्वनाथ चरित्र *
हो, वह निःसंकोच भावसे सूचित कर । यह सुन मदनरेखाने कहा, "हे बन्धु ! आपने इस तीर्थका दर्शन करानेकी जो कृपा की है उससे मैं कृतकृत्य हो गयी हूं । अब मुझे और कोई अभिलाषा नहीं है ।" इसके बाद मदनरेखाने मुनिसे अपने पुत्रके सम्बन्धमें कुछ प्रश्न पूछे । मुनिने उसके प्रश्नोंका उत्तर देते हुए कहा, "हे भद्रे ! पूर्वकालमें दो राजकुमार थे, उन्होंने धर्मारान कर देवत्व प्राप्त किया था। वहांसे च्युत होकर एक तो मिथिलापति पद्मरथ राजा हुआ और दूसरा तेरा पुत्र हुआ । इस समय पद्मरथ तेरे पुत्रको अपने साथ ले गया है और उसे अपनी रानी पुष्पमालाको सौंप दिया है। वह निःसन्तान होनेके कारण उसे अपना पुत्र हो समझकर उसका भलीभांति लालन-पालन कर रही है । पूर्वजन्म के प्रेमके कारण राजा इस जन्म में भी उसे बहुत चाहता है। उसने नगर में पुत्रजन्मका महोत्सव भी कराया है । इस समय तेरा पुत्र सब तरहसे सुखी है । तुझे उसकी लेशमात्र भी चिन्ता न करनी चाहिये ।”
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जिस समय मुनि यह बातें बतला रहे थे, उसी समय चन्द्र और रविकी प्रभासे भी अधिक तेजस्वी, रत्नों द्वारा निर्मित, घुंघुरोंके शब्दसे शब्दायमान, बाजोंके नाद और देवताओंकी जयध्वनिसे पूरित एक विमान वहां आ पहुँचा। उसमें से वस्त्राभूषण विभूषित एक तेजस्वी देव नीचे उतरा। उसने सर्वप्रथम मदनरेखाको तीन प्रदक्षिणायें देकर प्रणाम किया। इसके बाद वह मुनिको प्रणाम कर उनके पास बैठ गया । देवकी यह