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* षष्ठ सर्ग *
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कन्याओंके साथ सनत्कुमारने पाणिग्रहण किया । इसके बाद उत्तर श्रेणीके विद्याधरोंने भी अपनी पांचसौ कन्याएं सनत्कुमारसे व्याह दी । अब सनत्कुमार वहीं रहने और आनन्द करने लगे । कुछ दिनोंके बाद समस्त विद्याधर राजाओंने सनत्कुमारको राज्याभिषेक किया और उनकी अधोनता स्त्रोकार की । इस प्रकार बहुत दिनों तक विद्याधरोंका आतिथ्य ग्रहण करनेके बाद : सनत्कुमार चतुरंग सेनाके साथ आकाशगामो विमानपर आरूढ़ हो अपने नगरको लौट आये। यहां पर सनत्कुमारके माता-पिता उनकी राह देख रह थे । इसलिये वे सनत्कुमारका आगमन - समाचार सुनकर बड़े ही प्रसन्न हुए । अनन्तर सनत्कुमारने उनको प्रणामकर सब हाल कह सुनाया । इससे उनके माता-पिताओं को बड़ाहो आनन्द हुआ और वे पुत्रोंका मुंह फिर दिखानेके लिये ईश्वरको अनेकानेक धन्यवाद देने लगे ।
एक बार चक्र आदि चौदह महारत्न प्रकट हुए तब सनत्कुमारने ससूचे भरत क्षेत्रको अधिकृत कर लिया । इसके बाद कुछ दिनोंमें नवनिधान प्रकट हुए तब उसने अन्यान्य देशोंको अधिकृत कर चक्रवर्तीका पद प्राप्त किया। इस प्रकार वह चक्रवर्ती हो सानन्द जीवन व्यतीत करने लगा ।
एक बार सौधर्मेन्द्र इन्द्रसभामें बैठ कर नाटक देख रहे थे । इसी समय ईशान देवलोकसे संगम नामक देव किसी कार्य वश सौधर्मेन्द्रको मिलने आया। उसकी प्रभाके सम्मुख इन्द्रसभा उसी सरह तेज हीन मालूम होने लगी जिस तरह सूर्योदय होने पर चन्द्र