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________________ * षष्ठ सर्ग * ४०५ कन्याओंके साथ सनत्कुमारने पाणिग्रहण किया । इसके बाद उत्तर श्रेणीके विद्याधरोंने भी अपनी पांचसौ कन्याएं सनत्कुमारसे व्याह दी । अब सनत्कुमार वहीं रहने और आनन्द करने लगे । कुछ दिनोंके बाद समस्त विद्याधर राजाओंने सनत्कुमारको राज्याभिषेक किया और उनकी अधोनता स्त्रोकार की । इस प्रकार बहुत दिनों तक विद्याधरोंका आतिथ्य ग्रहण करनेके बाद : सनत्कुमार चतुरंग सेनाके साथ आकाशगामो विमानपर आरूढ़ हो अपने नगरको लौट आये। यहां पर सनत्कुमारके माता-पिता उनकी राह देख रह थे । इसलिये वे सनत्कुमारका आगमन - समाचार सुनकर बड़े ही प्रसन्न हुए । अनन्तर सनत्कुमारने उनको प्रणामकर सब हाल कह सुनाया । इससे उनके माता-पिताओं को बड़ाहो आनन्द हुआ और वे पुत्रोंका मुंह फिर दिखानेके लिये ईश्वरको अनेकानेक धन्यवाद देने लगे । एक बार चक्र आदि चौदह महारत्न प्रकट हुए तब सनत्कुमारने ससूचे भरत क्षेत्रको अधिकृत कर लिया । इसके बाद कुछ दिनोंमें नवनिधान प्रकट हुए तब उसने अन्यान्य देशोंको अधिकृत कर चक्रवर्तीका पद प्राप्त किया। इस प्रकार वह चक्रवर्ती हो सानन्द जीवन व्यतीत करने लगा । एक बार सौधर्मेन्द्र इन्द्रसभामें बैठ कर नाटक देख रहे थे । इसी समय ईशान देवलोकसे संगम नामक देव किसी कार्य वश सौधर्मेन्द्रको मिलने आया। उसकी प्रभाके सम्मुख इन्द्रसभा उसी सरह तेज हीन मालूम होने लगी जिस तरह सूर्योदय होने पर चन्द्र
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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