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* पार्श्वनाथ चरित्र *
आवें उस समय उन्हें देरोसे दान देना ( ५ ) अभिमान पूर्वक दान देना ।
इस प्रकार श्रावकको सम्यक्त्व मूल बारह व्रतों का पालन कना चाहिये। इससे भी सिद्धि प्राप्ति होती है । गृहस्थके लिये लोहेके तपाये हुए गोलोंके समान इन व्रतों का पालन करना बहुत ही कठिन है, अतएव उन्हें जिनपूजा तो अवश्य ही करनी चाहिये। जिनपूजासे बड़ा लाभ होता है । जिनेन्द्रकी पूजासे अनिष्ट दूर होता है, सम्पत्ति प्राप्त होती है और संसारमें सुयश फैलता है। इसलिये श्रद्धावान श्रावकोंको जिन पूजा अवश्य करना चाहिये। जिन पूजासे रावणने तीर्थंकर गोत्र उपार्जन किया था। उसकी कथा इस प्रकार है :
रावणकी कथा |
कनकपुर नामक एक समृद्धिशाली नगरमें सिंहसेन नामक एक न्यायी राजा राज करता था। उसके सिंहवती नामक एक रानी थी। राजा प्रजाका पुत्रवत् पालन करता था । उसी नगरमें कनक नामक एक करोड़पति महाजन भी रहता था। वह विदेशों में व्यापार करता था । उसके देवाङ्गनाके समान गुणसुन्दरो नामक एक स्त्री थी वह जिन धर्मपर वह बड़ाही अनुराग रखती थी। इसके उदरसे दो पुत्रों का जन्म हुआ था। इनमेंसे बड़ा पुत्र सबका
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