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* पाश्वनाथचरित्र. क्षेत्र-वस्तु परिमाणका अतिक्रम (३) चांदी सोनेके परिमाणका अतिक्रम (४) कुप्य परिमाणका अतिक्रम (५) द्विपद और चतुष्पदके परिमाणका अतिक्रम।
अब मैं तीन गुणवतोंका वर्णन करता हूं। इनमेंसे पहला गुणवत दिग्विरति है। इसके भी पांच अतिचार हैं-(१) उर्ध्वदिशिके प्रमाणका अतिक्रम (२) अधोदिशाके प्रमाणका अतिक्रम (३) तिर्यदिशाके प्रमाणका अतिक्रम (४) क्षेत्रवृद्धि अर्थात् काम पड़नेपर एक दिशाको घटाकर दूसरो दिशामें बढ़ जाना (५) दिशाका परिमाण याद न रखना। __ दूसरे गुणवतका नाम है भोगोपभोग विरमण । अन्नादिक जो एक बार भोग किया जाता है उसे भोग कहते हैं और ललना आदि जो चीज बारम्बार भोग की जाती हैं, उसे उपभोग कहते हैं। इस व्रतके भोजन विशयक पांच अतिचार माने गये हैं, यथा-(१) सचित्त आहारका भक्षण (२) सवित्त-प्रतिबद्धका भक्षण (३) अग्नि और जल द्वारा अर्धपक्वका भक्षण ( ४ ) पर्पटिका आदि दुःपक्क-कच्चे फलोंका भक्षण और (५) तुच्छ
औषधियोंका भक्षण। ___ कर्मविषयक पन्द्रह कर्मादान रूपी पन्द्रह अतिचारोंका वर्णन पहले ही किया चुका है।
अनर्थ दण्ड विरमण नामक तीसरे गुणवतके पांच अतिचार यह हैं -(१) कामोत्तेजक बातें कहना (२) भांडोंकी तरह कुचेष्टा कर लोगों को हँसाना, (३ असंबद्ध बातें कहना (४) अधि